Tuesday 5 December 2017

हिमालय में जारी है प्राणों की साधना

शैलेंद्र गोदियाल ’ उत्तरकाशी  -गंगोत्री घाटी की ही बात करें, तो यहां इस समय 45 साधक साधना में रत हैं। इनमें से कुछ नौ-दस वर्ष से यहां हैं। तीन साधु तो तपोवन में भी साधनारत देखे गए हैं। अधिक ऊंचाई पर होने के कारण तपोवन में हालात और भी कठिन होते हैं। तीनों ने चट्टानों की आड़ में अपनी कुटिया बनाई हुई है।

इसमें जीवन यापन के लिए जरूरी सामान भी जुटा रखा है। इनमें से एक साधु बीते नौ साल से मौन साधना में लीन हैं। उन्हें लोगों ने मौनी बाबा नाम दे दिया है। इसके अलावा गोमुख से चार किलोमीटर पहले भोजवासा में बाबा निर्मल दास अपने एक शिष्य के साथ तप कर रहे हैं। समुद्रतल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चीड़बासा में दाणी बाबा, पंक्षी गुफा में पंक्षी प्रकाश माई और गंगोत्री से पांच किलोमीटर गोमुख की ओर कनखू में एक साधु और दो साध्वी तपस्या में लीन हैं। गंगोत्री धाम के आसपास पांडव गुफा, फौजी गुफा, नंदेश्वर गुफा, राजा रामदास गुफा, अंजनी गुफा, वेदांता गुफा, शिव चेतना गुफा में भी साधु साधनारत हैं।

गंगोत्री घाटी में इन दिनों अनेक साधु-संन्यासी प्राणों को साधने में लीन हैं। कोई ध्यान में मगन है, तो कोई योग में। कोई मौन साधना में है, तो कोई कठिन तप में। बर्फीले बियावान की हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी इन साधकों की साधना अनवरत जारी रहती है। समुद्रतल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तपोवन में भी कुछ साधु साधना करते देखे जा रहे हैं। साधकों की बढ़ती संख्या एक नया संकेत है। 1हिमालय सदियों से साधना का केंद्र रहा है। आस्था, योग और अध्यात्म की अविरल गंगा यहीं से बहती है। गुफाओं-कंदराओं में साधुओं के कठिन तप से जुड़े किस्से और कुछ साक्ष्य आज भी रोमांचित करते हैं। यहां आज भी अनेक प्राचीन गुफाएं मौजूद हैं, जहां ऋषि-मुनियों ने घोर तप किया। 1980-90 तक भी यहां अनेक साधक देखे जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या इक्का-दुक्का तक सिमट गई। अब ऐसा लग रहा है कि वही दौर लौटने को है।1गुजरे हुए दौर की वापसी का संकेत: गंगोत्री घाटी गंगोत्री धाम से लेकर गोमुख-तपोवन तक योग साधना के लिए प्रसिद्ध है। गंगोत्री और गंगा से जुड़ी आस्था को लेकर यात्रकाल में हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। लेकिन यात्र के बाद शीतकाल में यहां केवल कुछ साधक ही रहते हैं। वह आश्रमों में नहीं, बल्कि गुफाओं और कंदराओं में रहकर साधना करते हैं। वह भी तब, जब अधिकतम तापमान भी शून्य से नीचे चला जाता है। ऐसे में पानी का इंतजाम भी बर्फ को पिघलाकर करना पड़ता है। इन कठिनाइयों के कारण ही धीरे-धीरे साधकों का यहां रुकना कम होता गया। लेकिन इस समय 45 साधुओं का यहां होना और घोर विषम परिस्थितियों व गला देने वाली ठंड में भी डटे रहकरसाधना करना, गुजरे हुए दौर की वापसी का संकेत है।बीते नौ साल से तपोवन में साधना कर रहे मौनी बाबा ’जागरणइस बार तपोवन में तीन, भोजवासा में एक, चीड़वासा में दो और कनखू में तीन साधुओं समेत गंगोत्री घाटी में करीब 45 साधु-संन्यासी साधना कर रहे हैं।1प्रताप सिंह पंवार, रेंज अधिकारी, गंगोत्री नेशनल पार्कगंगोत्री व उसके आसपास साधना के लिए रह रहे इन सभी साधु-संतों की स्थानीय अभिसूचना इकाई को जानकारी है।

साभार दैनिक जागरण

2 comments:

  1. पढ़ के अच्छा लगा मुझे। अच्छी जानकारी है। मेरे लेख को भी देखें गंगोत्री धाम की पौराणिक अवधारणा

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