Saturday 14 September 2013

अब ट्रेन से पहुंचेंगे केदारनाथ


ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट का एलाइनमेंट सर्वे पूरा होते ही फाइनल खाका तैयार कर लिया गया है।

करीब 127 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन का 80 फीसदी हिस्सा (करीब 100 किमी) टनल से गुजरेगा। इस दौरान ट्रेन 11 मनोरम स्टेशनों पर भी रुकेगी।
सीएम विजय बहुगुणा की अध्यक्षता में शुक्रवार को हुई बैठक में रेल विकास निगम के प्रबंध निदेशक सतीश अग्निहोत्री ने बताया कि वीरभद्र (नया ऋषिकेश) से यह रेल लाइन शुरू होगी। इसके स्टेशन शिवपुरी, व्यासी, देवप्रयाग, मलेथा, श्रीनगर, धारी, रुद्रप्रयाग, घोलतीर, गौचर और कर्णप्रयाग होंगे।

सर्वे का कार्य पूरा हो चुका है। एलाइनमेंट काम में हाई रिजोल्यूशन सेटेलाइट इमेजरी जैसी आधुनिक तकनीक इस्तेमाल की गई है। इसमें आईआईटी रुड़की सहित कई विश्वस्तरीय विशेषज्ञों की सहायता ली गई है। उन्होंने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के लिए राज्य सरकार की मदद मांगी। जिस पर सीएम ने भू-अध्याप्ति अधिकारी (लैंड एक्यूजीशन अफसर) नामित करने के निर्देश दिए।

बाद में मीडिया से बातचीत में सीएम ने कहा कि राष्ट्रीय महत्व की यह परियोजना उत्तराखंड की आर्थिकी के लिए भी काफी अहम है। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। राज्य सरकार इसमें हरसंभव सहयोग देने के लिए तत्पर है।

मालूम हो कि यह करीब 4295 करोड़ का प्रोजेक्ट है। 2012 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया है। यह रेल लाइन के बनने से चीन सीमा तक आवागमन आसान हो जाएगा।

रेल ट्रैक का काम जितनी तेजी से होगा उतनी ही तेजी से राज्य की अर्थव्यवस्था भी दौड़ेगी।
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प्रो. वीके बौड़ाई, अर्थशास्त्री

रेल परियोजना साकार होने से पहाड़ पर सफर करने वाले यात्रियों के लिए सुगम और सुरक्षित यातायात व्यवस्था हो जाएगी। पहाड़ी मार्गों पर होने वाली दुर्घटनाओं में भी कमी आएगी।
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एके शर्मा, आरक्षण पर्यवेक्षक, ऋषिकेश

ये होंगे फायदे
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ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक 11 स्टेशन होने से स्थानीय लोगों को तमाम तरह के रोजगार मिलेंगे।
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उत्तराखंड का पहला पहाड़ी रेलवे ट्रैक होने से आम लोगों के साथ पर्यटक भी बदरीनाथ, केदारनाथ, हेमकुंड, फूलों की घाटी, औली और तुंगनाथ जाने के लिए इसका उपयोग करेंगे।
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ट्रैक जिस रूट से गुजर रहा है वह सुंदर दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। इससे पर्यटक आकर्षित होंगे।

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बरसात में ऋषिकेश-देवप्रयाग, ऋषिकेश-चमोली रूट की सड़कें अक्सर बाधित रहती हैं। ट्रेन चलने से यह दिक्कत नहीं आएगी। जहां भूस्खलन की आशंका होगी, वहां टनल (सुरंग) से ट्रेन गुजरेगी।
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पहाड़ी बगीचों को फायदा मिलेगा। पहाड़ी फल और सब्जी को सस्ते में ट्रेन से ऋषिकेश तक लाया जा सकेगा।
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सड़कों पर वाहनों का दबाव कम हो जाएगा और हादसे भी कम होंगे।

ट्रैक की राह है कठिन
दार्जिलिंग और शिमला ट्रेन पहुंचाने के बाद अंग्रेज अधिकारियों का अगला लक्ष्य मसूरी तक रेल लाइन बिछाने का था। इसके लिए 18 नंवबर 1896 को हरिद्वार-मसूरी रेलवे ट्रैक का शिलान्यास किया गया। मसूरी के नीचे स्थित झड़ीपानी में टनल बनाने के दौरान भूधंसाव होने से काम रोकना पड़ा।

इसके बाद सर्वे हुआ, जिसमें अंग्रेज वैज्ञानिकों ने पाया कि मसूरी के पहाड़ (मध्य हिमालय के पहाड़) अन्य पहाड़ियों के अपेक्षा कच्चे हैं। इसलिए यहां पर टनल बिछाना मुश्किल है। उसके बाद मसूरी की रेल लाइन प्रोजेक्ट इतिहास हो गया।

जानकारों का मानना है कि यही दिक्कत ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन बनाने में भी आ सकती है। 127 किमी रूट पर 81 छोटी-बड़ी टनल बनाई जानी है। इंजीनियरों के सामने कच्चे पहाड़ में टनल बनाना चुनौती होगा।

केदारनाथ यात्रा शुरू करने की तैयारी
राज्य सरकार अब सीमित संख्या में श्रद्धालुओं, स्थानीय लोगों के लिए भी केदार धाम की यात्रा बहाल करने पर विचार कर रही है। मुख्यमंत्री ने संकेत दिए कि 30 सितंबर को मंदिर समिति के साथ प्रस्तावित बैठक में बड़ा फैसला लिया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के पैदल केदारनाथ पहुंचने से सरकार पर यात्रा शुरू करने का दबाव बन रहा है। इसके लिए सरकार सोनप्रयाग से केदारनाथ तक कई अस्थायी पड़ाव और चौकियां स्थापित करेगी, ताकि यात्रियों की मानीटरिंग हो सके और उन्हें रुकने-ठहरने व भोजन आदि की दिक्कत न हो।
 (सौजन्य से अमर उजाला देहरादून)

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