Tuesday 20 September 2011

गढ़वाली मेरी मातृभाषा कहने वाले साहित्यकार शैलेश ने सदा के लिए मौन

जब तक जिये, गढ़वाली साहित्य जिया
रुद्रप्रयाग/अगस्त्यमुनि/देहरादून-गढ़वाली मेरी मातृभाषा, यह बात गर्व से कहने वाले साहित्य सर्जक डॉ. हरिदत्त भट्ट शैलेश सोमवार को चिरनिद्रा में सो गए। उन्होंने जौलीग्रांट अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 85 वर्ष के थे और लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन से साहित्य जगत में गहरा शोक है।
प्रसिद्ध दून स्कूल में हिंदी के शिक्षक रहे शैलेश ने इस स्कूल में कई और भाषाओं के अध्ययन के दरवाजे खोले। शैलेश हिंदी के साहित्यकार थे, उन्होंने अंग्रेजी में भी कविताएं लिखीं लेकिन गढ़वाली से उनका गहरा लगाव रहा। सेवानिवृत्त होने के बाद डॉ. शैलेशने अपना ज्यादातर समय मसूरी में स्प्रिंग रोड स्थित अपने आवास शैल शिखरमें बिताया। इस दौरान उन्होंने जहां हिंदी और अंग्रेजी में दर्जनों कविताएं, पुस्तकें और लेख लिखे। शैलेश ने पर्वतारोहण और गढ़वाली भाषा और व्याकरण को नई पहचान दी। पर्वतारोहण की पृष्ठभूमि पर लिखी पुस्तकों के लिए दो बार यूपी सरकार ने नकद पुरस्कार दिया। गढ़वाली भाषा और साहित्य’, ‘पर्वतों के शिखरउनकी चर्चित पुस्तकों में शुमार हैं। डॉ. शैलेशने गढ़वाली साहित्य के लिए भी काफी कार्य किया। गढ़वाली कविताएं, गीत लिखे। 

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