Wednesday 23 February 2011

घर में खान फिर भी हैं अनजान

देहरादून घर का जोगी जोगटा, आन गांव का सिद्ध। कुछ ऐसी ही दशा उत्तराखंड की जड़ी-बूटियों की हो गई है। लोगों को यहां उगने वाली वनोषधियों की जानकारी तो है, लेकिन इनका इस्तेमाल करते हैं सिर्फ एक फीसदी लोग। बीमारी या अन्य किसी तकलीफ में ज्यादातर लोग अंग्रेजी दवाओं का सेवन करना अधिक पसंद करते हैं। इस बात का पता वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्लूआइआइ) के सर्वे में चला है। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने लोगों में जड़ी बूटियों के पारंपरिक ज्ञान का पता लगाने के लिए भागीरथी, यमुना व टौंस घाटी में सर्वे किया। ये वह इलाके हैं, जहां वन औषधियां काफी मात्रा में पाई जाती हैं। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीएस रावत के निर्देशन में की गई पड़ताल में पता चला कि औसतन 31 फीसदी लोगों को जड़ीबूटियों का ज्ञान है। लेकिन, सिर्फ एक फीसदी ही ऐसे लोग मिले, जो इस ज्ञान का प्रयोग बीमारी ठीक करने में करते हैं। वरिष्ठ शोधार्थी निनाद राऊत ने बताया कि तीनों घाटियों के अधिकतर लोग स्वास्थ्य खराब होने या चोट आदि लगने पर अंग्रेजी दवाओं का सहारा लेते हैं। जबकि यहां 71 बीमारियों को ठीक करने वाली 118 प्रकार की औषधियां उपलब्ध हैं। राज्य में 800 जड़ी बूटियां राज्य में 800 के आसपास जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। जड़ी बूटि शोध संस्थान, गोपेश्वर मुख्य तौर पर वनोषधियों की पौध तैयार कर कृषकों को उपलब्ध कराता है। बावजूद इसके लोगों में जूड़ी बूटियों का ज्ञान सीमित है।

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