Saturday 24 July 2010

नैनीताल तक नहीं पहुंचेगी ट्रेन!

- अत्यधिक लंबा रूट व भूगर्भीय संरचना बनी बाधक - कच्ची पहाडिय़ों के दरकने का खतरा - चीफ इंजीनियर कर चुके हैं प्री-फिजिबिलटी स्टडी - आजादी से पूर्व भी हो चुकी है कवायद हल्द्वानी (नैनीताल): विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नैनीताल तक ट्रेन का सफर शुरू हो पाने की कवायद को प्रथम चरण में ही तगड़ा झटका लगा है। हाल ही में रेलवे बोर्ड ने काठगोदाम से नैनीताल तक रेलवे लाइन बिछाने की संभावनाएं तलाशने के निर्देश दिए थे। पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय से चीफ इंजीनियर भी यहां का प्राथमिक मुआयना (प्री-फिजिबिलिटी स्टडी) कर चुके हैं। यहां के लंबे रूट, दरकती तथा कमजोर पहाडिय़ों ने इस राह को मुश्किल बना दिया है। खूबसूरत झील के चारों ओर बसा नैनीताल शहर देश से ही नहीं विदेश से भी हजारों पर्यटकों को हर वर्ष अपनी ओर आकर्षित करता है। झील के अलावा आसपास के तमाम पर्यटन स्थल सैलानियों के जेहन में उत्तराखंड की विशेष तस्वीर पेश करते हैं। भीमताल, सातताल, भवाली, सूखाताल सहित आसपास के सुंदर पर्यटक स्थल नैनीताल आने वाले सैलानियों को आकर्षित करते हैं। राज्य की पहचान में भी नैनीताल का अहम रोल है। इसी को देखते हुए रेलवे ने कुमाऊं के अंतिम स्टेशन काठगोदाम से नैनीताल तक रेलवे लाइन बिछाने की बात कही। पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक यूसी द्वादशश्रेणी ने मई में काठगोदाम के वार्षिक निरीक्षण के दौरान बोर्ड की मंशा को सार्वजनिक भी किया था। तभी से कुमाऊं वासियों की आशाओं को मानो पंख लग गए थे। उन्होंने इसके लिए जुलाई में प्री फिजीबिलिटी स्टडी कराने के निर्देश दिए थे। इधर इसी माह पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय गोरखपुर से चीफ इंजीनियर टीम सहित यहां का दौरा कर चुके हैं, लेकिन इस स्टडी के जो रिजल्ट सामने आए है उसने पहाड़ पर ट्रेन चढऩे की कवायद को फिर तगड़ा झटका लगा दिया है। स्टडी में एक ओर काठगोदाम से नैनीताल की रेल लाइन के लिहाज से स्थलीय दूरी को अत्यधिक पाया गया है। दूसरी ओर दरकती पहाडिय़ों का खतरा भी बाधा बना। स्टडी के मुताबिक काठगोदाम से नैनीताल की हवाई दूरी करीब 16 किमी और सड़क मार्ग से 35 किमी है। वहीं रेल लाइन के लिहाज से यह करीब 250 किमी होगी। ऐसे में अत्यधिक लंबे रूट के चलते योजना का खर्च भी बहुत अधिक हो जाएगा। जानकारों के मुताबिक यहां की पहाडिय़ां भी अत्यंत कमजोर हैं और इनके दरकने का खतरा भी अधिक है। इतना ही नहीं आजादी से पूर्व पहाडिय़ों पर ट्रेन चढ़ा चुके अंग्रेजों ने भी नैनीताल तक रेलवे लाइन बिछाने की कवायद शुरू की थी। वर्ष 1930 से 35 के बीच इसकी पहल हुई थी, लेकिन यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी थी। पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (सीपीआरओ) अमित सिंह ने बताया कि प्री-फिजीबिलिटी स्टडी में इस रूट की लंबाई अत्यधिक पाई गई है। इससे फिलहाल यहां ट्रेन संचालन की कोशिश मुश्किल हो गई है। अब प्री फिजीबिलिटी स्टडी में ही रेल लाइन बन पाने की संभावनाओं पर लगे विराम से कुमाऊं वासियों के साथ-साथ पर्यटन व्यवसाय को भी तगड़ा झटका लगा है।

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