Friday 12 March 2010

सृजन के संघर्ष में उत्तराखंड की मातृशक्ति

-सूबे की पंचायतों में पचास फीसदी से अधिक भागीदारी -आज राज्य में करीब 60 फीसदी से ज्यादा महिलाएं साक्षर -जीवन के हर क्षेत्र में कामयाबी की कहानी गढ़ रहीं उत्तराखंड की महिलाएं देहरादून,-'आज दो अभी दो उत्तराखंड राज्य दोÓ 'फूल नहीं चिंगारी है उत्तराखंड की नारी हैÓ। जरा याद कीजिए उत्तराखंड आंदोलन के दौर को, जब गांव, शहर, घाटियां ऐसे ही नारों से गूंज रहे थे और इन्हें स्वर दे रही थी उत्तराखंड की स्त्री शक्ति। यह किसी से छिपा नहीं है कि मातृशक्ति के संघर्ष के बूते ही उत्तराखंड का सपना साकार हो सका। राज्य प्राप्ति के बाद भी महिलाएं चुप नहीं बैठी हैं। उन्होंने उत्तराखंड को सरसब्ज बनाने का बीड़ा उठा लिया है। आज सूबे की पंचायतों में पचास फीसदी से अधिक भागीदारी कर वे अहसास करा रही हैं कि उन्हें अपने उत्तराखंड गांवों के विकास की अब भी उतनी ही चिंता है, जितनी की राज्य निर्माण से पहले थी। न सिर्फ पंचायत में बल्कि हर क्षेत्र में वह सकारात्मक पहल के लिए आगे बढ़ रही हैं। यह अलग बात है कि शहरी क्षेत्रों में यह रफ्तार ज्यादा है, मगर पहाड़ी इलाकों में भी धीरे-धीरे जागरूकता बढऩे लगी है। चार दशक पहले के परिदृश्य को देखें तो उत्तराखंड में महिलाएं घर-परिवार और कृषि के दायित्वों तक ही सिमटी हुई थीं। मगर तब भी उनकी चिंता में समाज और पर्यावरण शामिल था। विश्वभर में ख्याति प्राप्त चिपको आंदोलन हो या नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन इनकी कमान गौरादेवी, टिंचरी माई जैसी साधारण ग्रामीण महिलाओं ने ही संभाली। यह बात और है कि आंदोलन के क्षेत्र के अलावा उद्यमिता, नौकरियों और राजनीति में तब तक उनकी खास मौजूदगी नहीं थी। धीरे-धीरे हालात बदले और यहां की महिलाओं ने समय के साथ चलने की ओर कदम बढ़ाए। शिक्षा के लिए जगह-जगह स्कूल कालेज खुले तो महिलाओं को भी इसका फायदा मिला। साक्षरता अभियान ने भी उन महिलाओं को साक्षर बनाने में बड़ी मदद की, जो स्कूल का मुंह नहीं देख पाई थीं। आज राज्य में करीब 60 फीसदी सेे ज्यादा महिलाएं साक्षर हैं। महिलाएं शिक्षित हुई तो उनके सपनों को भी पंख लगे। किसी ने पंचायत में सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई तो किसी ने सरकारी सेवाओं में। कहीं स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिलाओं ने कामयाबी की दास्तान लिखनी शुरू की तो कहीं वे हवा में उड़ान भरने से पीछे नहीं रहीं। सेना, अद्र्धसैनिक बल समेत अन्य सेवाओं के साथ ही वे खेल, कला संस्कृति, प्रशासन यानी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। वर्ष 2008 में सूबे में महिलाओं के लिए पंचायतों में पचास फीसदी आरक्षण की व्यवस्था के बाद तो उन्होंने इससे कहीं आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारी बखूबी संभाली है। वे अब गांवों के विकास पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। कई जगह उन्होंने मिसाल भी कायम की है। जागरूकता की बात करें तो महिलाओं में यह शहरी क्षेत्रों मेें अभी अधिक हैै। वजह यह कि वहां सुविधाओं की कमी नहीं है। इसके उलट पहाड़ी क्षेत्रों में अभी जागरूकता ने वैसी रफ्तार नहीं पकड़ी है, जैसी शहरी इलाकों में हैं। ऐसा नहीं है कि पर्वतीय क्षेत्रों से महिलाएं आगे न आ रही हों, आ रही हैं, मगर रफ्तार कम है। लेकिन, जैसे-जैसे सुविधाओं का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे इसमें और तेजी आएगी।

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