Thursday 25 February 2010

-राज्य पशु व पक्षी का अस्तित्व खतरे में

-तेजी से गिर रही है कस्तूरी मृग और मोनाल की संख्या -राज्य प्रतीकों के संरक्षण पर ध्यान नहीं दे रही है सरकार, वंश वृद्धि के लिए नहीं बनी कोई योजना -कस्तूरी मृगों की संख्या महज पंद्रह हजार, मोनाल का संख्या घनत्व भी हुआ 20 प्रति वर्ग किलोमीटर Pahar1- गोपेश्वर (चमोली) उत्तराखंड में राज्य प्रतीकों का अस्तित्व ही खतरे में है। राज्य पशु 'कस्तूरी मृग' और राज्य पक्षी 'मोनाल' की संख्या लगातार कम होती जा रही है। राज्य प्रतीकों के संरक्षण पर विशेष ध्यान देना सरकार का दायित्व है, लेकिन सरकारी लापरवाही का आलम यह है कि अब तक सूबे में कस्तूरी मृग और मोनाल के संरक्षण व वंशवृद्धि के लिए कोई योजना तैयार नहीं की गई है। नतीजतन, सरकारी उपेक्षा के बीच बेहद खूबसूरत ये पशु-पक्षी अपने वजूद की लड़ाई लड़ने को मजबूर हो गए हैं। भारत गणराज्य में प्रत्येक राज्य अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, वन तथा वन्यजीव संपदा के परिप्रेक्ष्य में अपने-अपने राज्य प्रतीकों का निर्धारण करता है। इसके तहत उत्तराखंड पृथक राज्य गठन के बाद वर्ष 2001 में कस्तूरी मृग को राज्य पशु व मोनाल को राज्य पक्षी घोषित किया गया। संविधान के मुताबिक ये प्रतीक राज्य की संपदा माने जाते हैं और इनका संरक्षण एवं प्रजाति संवर्धन करना राज्य सरकार का दायित्व है, लेकिन राज्य सरकार इस दायित्व पर खरी नहीं उतर रही है। राज्य गठन के नौ वर्ष बाद भी कस्तूरी मृग व मोनाल पक्षी के संरक्षण व वंशवृद्धि के लिए कोई ठोस योजना तैयार नहीं की गई। स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि सरकार ने अभी तक इस ओर ध्यान दिया ही नहीं। हालात ऐसे हैं कि मखमली बुग्यालों में पाए जाने वाले कस्तूरी मृग (मस्क डियर) की संख्या पूरे उत्तराखंड में सिमटकर मात्र पंद्रह हजार के आसपास रह गई है, जबकि दस वर्ष पूर्व इनकी संख्या करीब तीस हजार थी। इसी तरह मोनाल (हिमालयन मोर) पक्षी का संख्या घनत्व भी दस वर्ष पूर्व 30 प्रति वर्ग किमी से घटकर 20 प्रति वर्ग किलोमीटर पर जा पहुंच है। अस्तित्व के लिहाज से ये आंकड़े बेहद चिंताजनक माने जा रहे हैं। दरअसल, इन दोनों पशु-पक्षियों की विशेषता ही इनके लिए खतरनाक बनी हुई है। कस्तुरी मृग के शरीर में मिलने वाला पदार्थ 'कस्तूरी' दमा, मिरगी, निमोनिया, टाइफायड व हृदय रोग की औषधि बनाने में प्रयुक्त होता है, जबकि मोनाल का उसके बेहद स्वादिष्ट मीट व अन्य उपयोगों की वजह से बड़े पैमाने पर शिकार हो रहा है। इसके अलावा, ग्लोबल वार्मिग के चलते प्रतिकूल हुआ मौसम भी इनकी संख्या में तेजी से आ रही गिरावट का कारण माना जा रहा है। केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग के डीएफओ धीरज पाण्डे ने भी स्वीकार किया कि लगातार कम हो रही संख्या के आधार पर ही कस्तूरी मृग व मोनाल पक्षी को दुर्लभ श्रेणी में रखा गया है। उन्होंने कहा कि इनके सरंक्षण की योजना तैयार करने पर विचार किया जा रहा है।

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