Friday 29 January 2010

खुदाई में मिली मूर्तियां खोल रही देवभूमि के रहस्य

-गढ़वाल मंडल में पुरातात्विक खुदाई में सूर्य, शिव, विष्णु, गणेश व दुर्गा की मिलीं सर्वाधिक मूर्तियां -आठवीं-नवीं सदी में पहाड़ी शिल्पकला थी उच्च शिखर पर पौड़ी गढ़वाल देवभूमि उत्तराखंड का वर्णन विभिन्न पौराणिक आख्यानों में मिलता है। रामायण, महाभारत व वेद- पुराणों में वर्णित विभिन्न घटनाओं का यहां से संबंध रहा है। गढ़वाल मंडल में विभिन्न स्थानों पर चल रही पुरातात्विक खुदाई भी उत्तराखंड के ऐतिहासिक महत्व को प्रमाणित करती है। खुदाई से पता चला है कि उत्तराखंडवंशी पंचदेवों सूर्य, शिव, विष्णु, गणेश और दुर्गा की सबसे अधिक पूजा करते थे। इतना ही नहीं, आठवीं-नवीं सदी में उत्तराखंड की शिल्पकला भी उच्च शिखर पर थी। बदरी- केदार व यमुनोत्री- गंगोत्री धामों के साथ हिमालय की उच्च पर्वत श्रृंखलाएं उत्तराखंड को देवस्थान बनाती हैं। इसके अलावा उत्तरकाशी में लाखामंडल मंदिर समूह, रैथल मंदिर समूह, शिव मंदिर, चमोली में कुलसारी, टिहरी में सूर्य मंदिर पलेठी व पौड़ी में वैष्णव मंदिर समूह, देवल मंदिर समूह, पौड़ी के पैठाणी में स्थित राहु मंदिर यहां पूजे जाने वाले देवी- देवताओं की जानकारी देते हैं। इन मंदिरों का वास्तु व शिल्पकला भी अनूठे हैं। मंदिरों की बनावट ऐसी है कि गर्भगृह में गूंजने वाले मंत्रों- स्वरों से विशेष तरंगें पैदा होती हैं। इसके अलावा गढ़वाल मंडल में कई ऐसे मंदिर भूगर्भ में दबे हुए हैं, जो पहाड़ी शिल्पकला के रहस्यों को उजागर करते हैं। पुरातत्व विभाग की ओर से विभिन्न स्थानों पर खुदाई के जरिए मंदिरों की जानकारी जुटाई जा रही है। इसके अलावा जनपद उत्तरकाशी में रैथल मंदिर समूह क्यार्क, जमदग्नि मंदिर थान, महासू मंदिर पूजेली, महासू मंदिर गैर व शिव मंदिर पौंटी का मंदिर जीर्णोद्धार किया जा रहा है। जनपद चमोली में लक्ष्मीनारायण मंदिर कुलसारी, रुद्रप्रयाग में महड़ मंदिर, टिहरी में सूर्य मंदिर पलेठी व जनपद पौड़ी में वैष्णव मंदिर समूह देवल (कोट), शिव मंदिर पैठाणी, प्राचीन मंदिर समूह कुक्खड़ गांव का जीर्णोद्धार प्रस्तावित है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डा. बीपी बडोनी ने बताया कि विभिन्न मंदिरस्थलों की खुदाई के दौरान आठवीं- नवीं सदी की पाषाण मूर्तियां मिली हैं, जिनकी शिल्पकारी बेहद उच्चकोटि की है। उन्होंने बताया कि अधिकांश मूर्तियां सूर्य, विष्णु, शिव, गणेश व दुर्गा की मिली हैं, जिससे पता चलता है कि प्राचीन काल में यहां इन्हीं पंचदेवों की पूजा मुख्य रूप से की जाती थी। उन्होंने बताया कि उत्तरकाशी के ज्ञाणजा में मिली कृष्णमूर्ति, देवल मंदिर समूह, वैष्णव मंदिर समूह समेत अन्य मंदिरों पर शोध भी चल रहे हैं। -

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