Wednesday 16 December 2009

-आखिर कब तक रह पाते जड़ों से दूर

राजधानी में बढ़ रही पहाड़ी भोजन के शौकीनों की तादाद परचून की दुकान ही नहीं, डिपार्टमेंटल स्टोरों की भी शान बने पहाड़ी अनाज इन दिनों राजमा, तोर, गहथ जैसी दालों के साथ ही मंडुवे की है खासी खपत देहरादून: वक्त ने करवट ली और रहन-सहन के मायने बदल गए। दिखावे की चाह में जड़ें छूटने लगीं और चकाचौंध में अस्तित्व कहीं गुम-सा हो गया, पर अति हमेशा नुकसानदेह ही होती है, यह बात समझा में आई तो फिर जड़ों ने ही सहारा दिया। चलो अच्छा है देर से ही सही, जड़ों के छूटने की अहमियत का अंदाजा तो हुआ। संदर्भ उत्तराखंड के पहाड़ी अनाज का ही है, जिसे महानगरों में बैठे लोग बिसरा बैठे थे, अब वे इसके महत्व को समझाने लगे हैं। राजधानी देहरादून भी इससे अछूती नहीं है और गढ़भोज के शौकीनों की तादाद में लगातार इजाफा हो रहा है। यही वजह है कि पहाड़ी अनाज न सिर्फ परचून की दुकानोंं, डिपार्टमेंटल स्टोर्स की शान भी बन गए हैं। मौसम सर्दियों का है तो इन दिनों पहाड़ी राजमा, तोर, गहथ जैसी पौष्टिक दालों के साथ ही मंडुवे के आटे की खपत ज्यादा बढ़ गई है। अतीत में झाांके तो महानगरों की चकाचौंध में पहाड़ी अनाज कहीं खो सा गया था। आधुनिक दिखने की चाह में थाली में 'जहर' को भी स्वीकार किया जाने लगा। वजह यह कि रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से 'जहरीली' होती जमीन ने फसलों को भी अपने आगोश में ले लिया। जाहिर है 'जहरयुक्त' अन्न खाने से सेहत भी नासाज होने लगी। ऐसे में जंक फूड और बीमारियों के इस दौर में थाली में बदलाव के लिए फिर से याद आई पहाड़ी अनाजों की। सरकार की ओर से कुछ प्रयास हुए तो लोगों ने पहाड़ में पैदा होने वाले जैविक अनाजों मंडुवा, झांगोरा, कौणी, राजमा, उड़द, गहथ, तोर समेत अन्य पौष्टिक फसलों के महत्व को समझाा। फिर होने लगी महानगरों में इन अनाजों की खोज, यानी शुरू हुआ जड़ों की ओर लौटने का दौर। राजधानी इसका उदाहरण है। बीते पांच-छह सालों से दून में भी लोग धीरे-धीरे पहाड़ी अनाज की ओर उन्मुख हुए और आज यह उनकी पहली पसंद बन गए हैं। आज राजधानी में गली-मुहल्लों की दुकानों से लेकर डिपार्टमेंटल स्टोर्स तक में पहाड़ी अनाज अपनी चमक बिखेर रहे हैं। दून में विकास भवन स्थित सरस मार्केटिंग सेंटर का ही जिक्र करें तो वहां जैविक उत्पाद परिषद, कृषि विभाग, ग्राम्य विकास विभाग के काउंटरों से रोजाना ही बड़ी संख्या में लोग पहाड़ी अनाज खरीद रहे हैं। सरस मार्केटिंग सेंटर में जैविक उत्पाद परिषद के काउंटर के सेल्समैन भुवनेश पुरोहित बताते हैं कि सेंटर से प्रतिमाह 50 हजार से अधिक मूल्य के पहाड़ी अनाज बिकते हैं। इन दिनों तो तोर, कुलथ, नौरंगी, काला व सफेद भट, राजमा, उड़द, मंडुवे का आटा, लाल चावल, बासमती, भूरा चावल की ज्यादा डिमांड है। आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगी। राजपुर रोड स्थित एक डिपार्टमेंटल स्टोर के प्रबंधक अजय असवाल के अनुसार पहाड़ी राजमा, सोयाबीन, तोर, कुलथ जैसी दालों की मांग बढ़ी है और लोग इन्हें ढूंढते हैं। अब तो यह दालें डिपार्टमेंटल स्टोरों की शान बन गई हैं। इधर, हनुमान चौक स्थित एक व्यवसायी एके अग्रवाल का कहना है कि पहाड़ी अनाज यूं तो अब पूरे साल पसंद किए जा रहे हैं, मगर सर्दियों के सीजन में डिमांड ज्यादा रहती है। हनुमान चौक के एक अन्य व्यवसायी जितेंद्र ने बताया कि उनकी चक्की से ही प्रतिमाह पांच-सात कुंतल मंडुवे का आटा ही बिकता है।

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