Saturday 7 November 2009

-यहां दुल्हन ले जाती है दूल्हे के घर बारात

-जौनसार में अनूठी हैं शादी की रस्में -कुल देवता की अनुमति के बाद होता है रिश्ता -दुल्हन की बारात जाती है दूल्हे के घर -कन्या पक्ष के बारातियों के लिए काटे जाते हैं बकरे विकासनगर(देहरादून) विदेश ही नहीं, देश में भी आधुनिक तौर तरीकों व शानो-शौकत के साथ विवाह करने का प्रचलन बढ़ रहा है, लेकिन जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर के अधिकांश गांवों में सादगी के साथ शादी करने का रिवाज है। यहां दूल्हे के बजाए दुल्हन की बारात वर पक्ष के यहां ले जाने की परंपरा वर्तमान में भी कायम है। जौनसार-बावर क्षेत्र में वर पक्ष की ओर से कन्या पक्ष के घर रिश्ता ले जाने की पहल की जाती है। उसके बाद वर व कन्या पक्ष के परिजन अपने-अपने कुल पुराहितों और कुल देवता महासू देव की अनुमति लेने के बाद शादी का दिन तय करते हैं। इसके बाद वर और कन्या पक्ष के परिजन स्वयं अपने-अपने ईष्ट मित्रों व नातेदार रिश्तेदारों के घर जाकर उन्हें शादी में शामिल होने का न्योता देते हैं। क्षेत्र के कुछ दूरस्थ गांवों को छोड़ दें तो यह व्यवस्था अब लगभग बदल गई है। लोग अब निमंत्रण कार्ड के माध्यम से मेहमानों को आंमत्रित करते हैं। परंपरानुसार, विवाह की निश्चित तिथि से एक रोज पहले वर पक्ष की ओर से चाचा, मामा, भाई या पिता गांव के तीन प्रमुख व्यक्तियों को साथ लेकर कन्या पक्ष के घर जाते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में जोजोडिय़ा कहा जाता है। कन्या पक्ष के लिए वर पक्ष की ओर से शादी का जोड़ा, गहने, जूते व श्रंृगार आदि का सामान दिए जाने का रिवाज है। शादी के दिन दुल्हन की बारात गाजे-बाजे, ढोल-दमाऊं के साथ वर पक्ष के घर पहुंचती है। जहां पर वर पक्ष के लोग बारातियों (जोजोडिय़ों) का जोरदार स्वागत करते हैं। दूल्हे पक्ष की ओर से कन्या पक्ष के बारातियों के स्वागत में बकरे काटे जाते हैं। जोजोडिय़ों के लिए गांव में अलग से डेरा दिया जाता है। वर पक्ष की ओर से दुल्हन के साथ आए बारातियों के स्वागत में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाती। बारातियों के लिए खासतौर से मीट, चावल, पूरी, हलवा, घी, दाल, साग-सब्जी, सलाद व चटनी आदि का इंतजाम किया जाता है। शादी के फेरे से लेकर विवाह की सारी रस्में दूल्हे के घर पर बने मंडप पर निभाई जाती हैं। शादी के दूसरे दिन जोजोडिय़ा विदाई गीत 'छांइयां' गाते हुए वापस घर लौट जाते हैं। शादी के तीसरे या पांचवे दिन नवदंपति दुणोजिया के रूप में वधू पक्ष के घर जाते हैं, जहां पर उनके स्वागत में बकरा काटा जाता है। क्षेत्र में जुलाई, अगस्त व सितंबर को छोड़ बाकी सभी माह में विवाह शुभ माना जाता है। चिल्हाड़ निवासी बुजुर्ग बर्फियानंद बिजल्वाण का कहना है कि इस प्रकार के विवाह से कन्या पक्ष पर कोई बोझा नहीं पड़ता। या यूं कहिए कि दहेजरहित शादी होती है। इसलिए यह परंपरा कायम रहनी चाहिए। वहीं, युवा खजान सिंह नेगी का कहना है कि बदलते जमाने के साथ क्षेत्र में विवाह के तौर-तरीके भी बदलने चाहिए। लड़की की बारात वर पक्ष के यहां जाना वर्तमान में सही नहीं लगता।

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