Monday 28 September 2009

=सैलानियों के रुझाान में कमी से चिंता

-उत्तराखंड की वादियों में ट्रेकिंग के प्रति कम हो रहा पर्यटकों का रुझाान -4 साल में 32.65 लाख से 2.34 लाख तक लुढ़का जीएमवीएन का व्यवसाय -निजी पर्यटन व्यवसायी वन विभाग द्वारा थोपे जा रहे शुल्क को मान रहे कारण देहरादून पहाड़ी राज्य की हसीन वादियां हमेशा से ही पर्यटकों को आकर्षित करती आई है। हिमालयी ग्लेशियरों से निकलने वाली गंगा, यमुना, अलकनंदा, भिलंगना, पिंडर जैसी सदानीरा नदियां, ऊंचे पर्वत शिखर और जैव-विविधता से भरपूर वनक्षेत्रों ने सूबे में 'ट्रेकिंग' को पर्यटन व्यवसाय के एक अहम अंग के रूप में स्थापित किया है। जाहिर है, ट्रेकिंग का यह व्यवसाय प्रदेश के कई सुदूरवर्ती गांवों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी बना हुआ है। लेकिन पिछले कुछेक वर्षों से ट्रेकिंग के घटते रुझाान ने पर्यटन विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है। कहा जाता है कि अगर हिमालय को करीब से जानना और महसूस करना हो, तो ट्रेकिंग से बेहतर कोई तरीका नहीं हो सकता। यही कारण है कि उत्तराखंड में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों का कच्चे व सर्पीले पहाड़ी रास्तों पर पैदल चलकर हिमालय के नैसर्गिक सौंदर्य को निहारना कोई नई बात नहीं है। लेकिन चिंता की बात यह है कि कुछेक वर्षों से ट्रेकिंग के प्रति पर्यटकों का रुझाान कम होता दिख रहा है। पर्यटन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि यहां देशी-विदेशी पर्यटकों की आमद हर साल बढ़ रही है। वर्ष 2004 में कुल 1 करोड़ 39 लाख पर्यटक उत्तराखंड की सैर करने पहुंचे, जबकि 2008 में यह संख्या 2 करोड़ 31 लाख से भी ऊपर जा पहुंची। लेकिन यदि सूबे के आरक्षित वनक्षेत्रों में पर्यटकों की आमद पर नजर डालें, तो यह रुझाान कम हो रहा है। वर्ष 2007-08 में कुल 3 लाख 55 हजार पर्यटकों ने आरक्षित वनक्षेत्रों की सैर की, लेकिन अगले ही वर्ष (2008-09 में) यह संख्या घटकर 2 लाख 97 हजार पर ही सिमट गई। हालांकि वन विभाग को पर्यटकों से अधिक राजस्व जरूर मिला। यानी, 2007-08 में 34128173 रुपये और 2008-09 में 38140127 रुपये प्राप्त हुआ। जाहिर है यह बढ़ा हुआ राजस्व प्रति पर्यटक वसूले जाने वाले शुल्क की दर में वृद्धि का नतीजा है। राज्य सरकार का उपक्रम गढ़वाल मंडल विकास निगम भी सूबे में पर्यटन व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। निगम के माउंटेन डिवीजन को पर्वतारोहण व ट्रेकिंग से होने वाली आय पर नजर डालें, तो यहां भी चिंताजनक संकेत नजर आते हैं। वर्ष 2005-06 में निगम के माउंटेन डिवीजन ने जहां 32.65 लाख रुपये का कारोबार किया, वहीं ठीक अगले ही वर्ष यह 30.95 लाख रुपये पर सिमट गया। वर्ष 2007-08 में यह कारोबार 7.72 लाख रुपये और वर्ष 2008-09 में मात्र 2.34 लाख रुपये तक सिमट गया। सरकारी स्तर पर ट्रेकिंग रूटस की मरम्मत व अवस्थापना सुविधाओं के विकास की कवायद भी जारी है, बावजूद इसके ट्रेकिंग व्यवसाय का यह गिरता ग्राफ निश्चित तौर पर चिंता का विषय है। पर्यटन से जुड़े निजी व्यवसायी धर्मेंद्र सिंह नेगी व राजीव तिवारी भी मानते हैं कि पर्वतारोहण व ट्रेकिंग व्यवसाय तेजी से गिर रहा है, जिसका प्रमुख कारण है वन विभाग द्वारा पर्यटकों से वसूले जाने वाले शुल्क में निरंतर वृद्धि होना। हर साल नए प्रकार के शुल्क व रास्ते में पेश आने वाली दिक्कतों के चलते ट्रेकिंग के इच्छुक पर्यटक पड़ोसी राज्य हिमाचल की ओर शिफ्ट होते जा रहे हैं। हालांकि वन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि पर्यटकों से प्राप्त होने वाले राजस्व को ट्रेकिंग रूट्््स पर बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने पर ही खर्च किया जाता है। --- प्रदेश के प्रमुख ट्रेकिंग रूट््््््स.... -केदारनाथ-वासुकीताल ट्रेक। -पंचकेदार ट्रेक। -कालिंदीखाल ट्रेक। -गंगोत्री नंदनवन-तपोवन ट्रेक। -डोडीताल-यमुनोत्री ट्रेक। -फूलों की घाटी ट्रेक। -खतलिंग सहस्त्रताल ट्रेक। -हरकीदून ट्रेक। -रूपकुंड ट्रेक। -बूढाकेदार-पंवाली कांठा-केदारनाथ ट्रेक। -कालसी-लाखामंडल ट्रेक। -क्वारी पास ट्रेक। -बिन्सर ट्रेक। -चंद्रशिला विंटर सम्मिट ट्रेक। -भदराज-ज्वाल्पा देवी-कैंप्टी फॉल ट्रेक। -औली-क्वारी पास-तपोवन ट्रेक। -नंदादेवी नेशनल पार्क ट्रेक। -आदि कैलाश ट्रेक। -मिलन ग्लेशियर ट्रेक। -पिंडारी ग्लेशियर ट्रेक। -कफनी ग्लेशियर ट्रेक। -पंचाचूली ग्लेशियर ट्रेक।

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