Tuesday 22 September 2009

पौड़ी की रामलीला धूम यूनेस्को तक

-ऐतिहासिक रामलीला को 110 वर्ष पूरे, इस वर्ष मंचन 19 से -अंतर्राष्ट्रीय धरोहर के लिए चुनी गई है यह रामलीला पौड़ी गढ़वाल, बुराई पर सच्चाई की जीत का प्रतीक पवित्र त्योहार दशहरा नजदीक है। दशहरे के मद्देनजर देशभर में तैयारियां शुरू हो जाती हैं और इसके तहत गली-कूचों तक में भगवान राम की जीवनी का मंचन रामलीला के रूप में किया जाता है। यह भारत की परंपरा है और इसे हर साल धूमधाम से निभाया जाता है। रामलीलाओं में से एक उत्तराखंड की रामलीला ऐसी भी है, जिसकी धूम देश की सरहदों से हजारों मील दूर यूनेस्को तक है। यहां बात हो रही है पौड़ी मंडल मुख्यालय में आयोजित होने वाली रामलीला की। इस वर्ष 19 सितंबर से शुरू होने जा रही पौड़ी की रामलीला 110 साल पूरे कर चुकी है। इतना ही नहीं यूनेस्को ने इसे अंतर्राष्ट्रीय धरोहर के लिए भी चुना है। मनोरंजन के तमाम संसाधन भले ही आज गांव-गांव तक पहुंच गए हों, लेकिन आज भी गढ़वाल में रामलीला मंचन को उत्साह कतई नहीं घटा है। हां, पहले और आज के रामलीला मंचन में फर्क जरूर है, लेकिन मंचन में प्रयुक्त हो रहे आधुनिक संसाधनों ने इसका क्रेज और बढ़ा दिया है। पौड़ी मंडल मुख्यालय में रामलीला मंचन को इस साल 110 साल पूरे हो जाएंगे। पौड़ी की ऐतिहासिक रामलीला कई मायनों में अपनी अलग ही पहचान रखती है। यहां रामलीला की शुरुआत वर्ष 1897 में कांडई गांव से हुई थी। तब गांव में ही रामलीला मंचन किया जाता था। वर्ष 1908 में भोला दत्त काला, तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक पीसी त्रिपाठी, क्षेत्रीय 'वीर' समाचार पत्र के संपादक कोतवाल सिंह नेगी व साहित्यकार तारादत्त गैरोला के प्रयासों से पौड़ी शहर में रामलीला का मंचन शुरू किया गया। उस समय छीला (भीमल के पेड़ की लकडिय़ां) को जलाकर रात भर रामलीला मंचन किया जाता था। 1930 में लालटेन की रोशनी में और 1960 के बाद से विद्युत बल्बों की मदद से मंचन किया गया। इस तरह पौड़ी की रामलीला में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव आते रहे, लेकिन यह अनवरत जारी। नब्बे के दशक में उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौर में दो साल मंचन नहीं किया जा सका, वजह कि अधिकांश रंगकर्मी खुद आंदोलन से जुड़े हुए थे। उसके बाद से यहां लगातार दस दिनी रामलीला का मंचन होता है। पौड़ी की रामलीला की खासियत यह है कि यहां मंचन पूरी तरह पारसी थियेटर एवं शास्त्रीय संगीत पर आधारित है। रामलीला मंचन शुरू होने से पहले कमेटी और अन्य नागरिकों की ओर से कंडोलिया देवता की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। पहले रामलीला के पात्रों की भूमिका पुरुष पात्र ही निभाते थे, लेकिन वर्ष 2004 से रामलीला मंचन में महिला पात्रों की भूमिका महिला कलाकार करने लगी हैं। महत्वपूर्ण बात यह कि पौड़ी की यह ऐतिहासिक रामलीला अंतर्राष्ट्रीय पटल पर परखी गई है। दरअसल, कुछ समय पूर्व यूनेस्को की ओर से भगवान राम से जुड़ी तमाम विधाओं के संरक्षण की योजना बनाई गई। इसके तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली ने देश भर में रामलीलाओं पर शोध किया। फरवरी 2008 में पौड़ी रामलीला के डाक्यूमेंटेशन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली ने रिकार्ड कर दिए और यह साबित हुआ कि पौड़ी की रामलीला ऐतिहासिक धरोहर है। खुद यूनेस्को ने इसे यह मान्यता प्रदान की है। इस वर्ष यह 111वें साल में प्रवेश कर जाएगी। वरिष्ठ रंगकर्मी एवं रामलीला मंचन से जुड़े गौरी शंकर थपलियाल बताते हैं कि पौड़ी की रामलीला तुलसी रामचरितमानस पर आधारित होती है। उन्होंने बताया कि इस बार रामलीला को और आधुनिक पुट दिया जा रहा है।

2 comments:

  1. wah kaya baat hai its really good.

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  2. Really amazing fact. I remember, when we were kids, we used to eagerly weight for evenings durin the ramlila days, and whole ramlila ground would be covered with peoples. There would be rounds and rounds of peanut eating. It was so thrilling. Really exciting news. Thanls for the post.

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