Wednesday 16 September 2009
पहाड़ की महिलाओँ की पीड़ा है -लछमा-
अनपढ़, पहाड़ों सा कठोर जीवन जीने के लिए अभिशप्त, फिर भी पहाड़ों-सी सरल और स्नेह की प्रतिमूर्ति है लछमा। वह सिर्फ एक ही बात जानती है कि जीवन में कितना ही बड़ा दु:ख क्यों न आ जाए,
लेकिन हंसने से हमें कोई नहीं रोक सकता। यह बानगी है संभव मंच परिवार की ओर से रविवार को नगर निगम के प्रेक्षागृह में मंचित महादेवी वर्मा के चर्चित नाटक लछमा की। लछमा एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसे किसी से कोई शिकायत नहीं। ईजा-बौज्यू उसका ब्याह एक पगलाए युवक से कर देते हैं। जेठानियां उसे बात-बात पर प्रताडि़त करती हैं और कभी-कभी तो जेठजी जी उस पर हाथ उठा देते हैं, लेकिन मजाल क्या लछमा के चेहरे पर शिकन भी उभर आए। वह तो सिर्फ हंसना जानती है। नाटक एक बड़ा सवाल छोड़ता है कि लछमा के मिलने से महादेवी जी को तो एक अच्छी-खासी कहानी मिल गई, पर महादेवी के सानिध्य में आने से लछमा को क्या मिला? फिर नाटक स्वयं ही उत्तर देता है, अनपढ़ लछमा को मिली पढ़ने की प्रेरणा। उसने जाना कि पढ़ना-लिखना इंसान के लिए क्यों जरूरी है। अभिषेक मैंदोला द्वारा रूपांतरित व निर्देशित इस नाटक में लछमा की भूमिका को कुसुम पंत ने बखूबी जिया। कुमाऊंनी पुट लिए संवाद और आंचलिक गीत-संगीत का प्रयोग नाटक को जीवंतता प्रदान करते हैं। ज्योति पुंडीर, नंदिनी पुजारी, प्रदीप रतूड़ी, रुचि पांडे, मनीष बलूनी, संजय गैरोला, गोविंद जुयाल, हेमा पंत, सावित्री, मंजू, नूपुर, संदीप, रेखा, वैभव, प्रमोद राणा, जयवीर त्यागी, राहुल, शांति, सौम्या जोशी व गौरव जोशी ने अपनी-अपनी भूमिकाओं से पूरा न्याय किया।
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