Monday 14 September 2009

गिनीज बुक की दौड़ में उतरी उत्तराखंड की - 108

उत्तराखण्ड का नाम गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में भेजेंगे निशंक देहरादून, अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और विकटतम भौगोलिक परिस्थिति के लिए प्रसिद्ध उत्तराखण्ड राज्य में चलते वाहन में सबसे अधिक सफल प्रसव का रिकार्ड बनाने के लिए राज्य का नाम "गिनीज विश्व रिकार्ड पुस्तक में दर्ज कराने के लिए भेजा जाएगा। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रालय का भी कार्यभार संभाल रहे रमेश पोखरियाल निशंक ने भाषा से विशेष बातचीत के दौरान बताया कि राज्य में पिछले डेढ वर्ष के भीतर चलती एम्बुलेंस में प्रसव के 784 मामलों को सफलतापूर्वक निपटाया गया, जो पूरी दुनिया में एक रिकार्ड है। उन्होंने कहा कि मैदानी इलाकों की तुलना में पहाड़ी इलाकों में परिस्थिति बहुत अधिक विकट होती है और प्रसव के समय महिलाओं को समुचित सुविधा नहीं मिल पाती, जिससे उन्हें बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। निशंक ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर उनके द्वारा शुरू की गई 108 आपात चिकित्सा वाहन सुविधा ने सफलता के कई झाण्डे गाड़े हैं।मुख्यमंत्री निशंक ने कहा कि इस वाहन सुविधा ने खासतौर पर खतरनाक तथा दुर्लम पहाड़ी मार्गों से गांवों में पहुंच कर गत वर्ष 15 मई से लेकर इस वर्ष छह सितंबर के बीच 784 नौनिहालों को सुरक्षित जीवन प्रदान कर पूरी दुनिया में रिकार्ड कायम किया "या है। ऐसा उदाहरण कहीं नहीं मिलता है और इस उपलब्धि को गिनीज विश्व रिकार्ड पुस्तक में दर्ज कराने का प्रयास किया जाएगा। निशंक ने कहा कि इसके अतिरिक्त इसी वाहन सुविधा के माध्यम से 28 हजार 905 महिलाओं को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद सुरक्षित प्रसव कराया गया। मुख्यमंत्री ने बताया कि इसके अतिरिक्त और भी कई रिकार्ड कायम किए गए हैं, जिनका ब्यौरा भी भेजा जाएगा। इस अवधि में 108 आपात वाहन द्वारा 25 लाख 42 हजार 135 टेलीफोन काल प्राप्त किए गए जिसमें से 13 लाख नौ हजार 902 काल आपातकालीन थे। इसमें 90 हजार 890 व्यक्तियों को आपात सुविधा मुहैया कराई गई। उन्होंने बताया कि 2206 लोंगों को वाहन में ही आपात सुविधा मुहैया कराई गई जबकि 82 हजार 614 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। निशंक ने बताया कि 15 हजार 494 मामले पुलिस को संदर्भित किए गए। निशंक ने कहा कि आंकडे यह साबित करते हैं कि आपात चिकित्सा सुविधा के माध्यम से उत्तराखण्ड का नाम "गिनीज पुस्तक में दर्ज कराने का दावा कितना जायज है। राज्य में इस अवधि में 13 हजार 242 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें सभी लोगों को इस सुविधा के माध्यम से चिकित्सालय भेजा गया। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड के 13 जिलों के मैदानी इलाकों को छोड़ दिया जाए तो 65 प्रतिशत से भी अधिक वन क्षेत्र हैं और इन्हीं क्षेत्रों में गांव बसे हुए हैं। इन गांव वालों को बेहतर चिकित्सा सुविधा मुहैया कराना उनकी सरकार की प्राथमिकता है। निशंक ने कहा कि दूर दराज के लोगों को आपात चिकित्सा सुविधा मुहैया कराना पर्वतीय इलाकों में नाकों चने चबाने जैसा है लेकिन उनकी सरकार इसे बखूबी कर रही है। दिल का दौरा पडऩे से प्रभावित 2322 लोगों को इस सुविधा के माध्यम से चिकित्सा मुहैया कराई गई और उनका जीवन बचाया गया। इसी तरह दमा के 3327 मरीजों को भी समय रहते दवा दी गई। यह अपने आप में एक रिकार्ड है। उन्होंने कहा कि यह भी गौरतलब है कि सूचना प्राप्ति के बाद एम्बुलेंस को पीडि़त तक पहुंचने में औसतन आठ से दस मिनट का समय लगता है और ग्रामीण क्षेत्र वाले मरीज को करीब 47 मिनट के भीतर तथा शहरी क्षेत्र के मरीज को लगभग29 मिनट के भीतर अस्पताल पहुंचा दिया जाता है। मुख्यमंत्री ने बताया कि इस सुविधा को शीघ्र ही प्रखण्ड स्तर पर शुरू किया जाएगा।

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