Tuesday 14 July 2009

बीस वर्षों बाद टूटी परिवहन विभाग की नींद

2009 तक मोटर यान नियमावली 1940 के फार्म हो रहे थे निर्गत 1988 के नए मोटर व्हीकल एक्ट के नए फार्म के विषय में नहीं थी जानकारी -कोर्ट के निर्णय के बाद जारी हो रहे हैं नए फार्म देहरादून परिवहन विभाग के किस्से भी अजब-गजब हैं। आलम यह है कि परिवहन विभाग बीस वर्षों से परमिट के ऐसे फार्म जारी कर रहा था, जिनका इस्तेमाल पहले ही समाप्त हो चुका था। मामले का खुलासा तब हुआ जब राज्य परिवहन न्यायाधिकरण ने ऐसे फार्मों पर जारी परमिट निरस्त कर दिए। तब जाकर परिवहन विभाग की नींद टूटी और अब नए एक्ट के अनुसार बनाए गए परमिट फार्म जारी किए जा रहे हैं। परिवहन विभाग में व्यावसायिक वाहनों को परमिट देने से पहले उनसे फार्म भरवाए जाते हैं। इनमें कांटे्रक्ट कैरेज (ठेके वाली गाड़ी) और स्टेज कैरेज (सवारी गाड़ी, जो जगह-जगह स्टाप पर रुकती है) के लिए परमिट जारी किए जाते हैं। फार्म को इसके बाद परमिट शाखा के कर्मचारी चेक करते हैं। फिर इन आवेदनों को राज्य परिवहन प्राधिकरण (एसटीए) और संभागीय परिवहन प्राधिकरण (आरटीए) की बैठक में रखा जाता है, जहां प्राधिकरण के विवेकानुसार परमिट जारी किए जाते हैं। वर्तमान में इन परमिटों को आवेदन करने वाले फार्म मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के अनुसार बनाए गए हैं। हैरतअंगेज यह कि फरवरी 2009 तक जिन आवेदन फार्म पर परमिट जारी किए गए, वह वैध नहीं थे। दरअसल विभाग कांटे्रक्ट कैरीज के लिए ऐसे फार्म पर परमिट जारी कर रहा था, जो मोटर यान नियमावली 1940 के अंतर्गत तैयार किए गए थे। यानि कि विभाग के पास 2009 तक मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के अनुसार बनाए गए फार्म उपलब्ध थे ही नहीं। बीस वर्षों में विभाग में सैकड़ों कर्मचारी आए और गए, किंतु किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। इसी प्रकार स्टेज कैरीज के लिए दिए जा रहे आवेदन फार्म भी पुराने थे। यह भले ही 1988 के एक्ट के अनुसार बने थे, लेकिन यह केवल एक्ट की धारा-70 के अनुसार जारी थे, जबकि नए फार्म में एक्ट की धारा 69, 70 और के उपबंध और धारा 66 के अंतर्गत परमिट का आवेदन करने का प्रावधान है। यह संशोधन कब लागू हुआ इस विषय में विभाग के किसी भी अधिकारी व कर्मचारी को कोई जानकारी नहीं। शायद विभाग की कुंभकर्णी नींद जारी ही रहती यदि राज्य परिवहन प्राधिकरण के एक फैसले ने विभाग को झाकझाोर कर न दिया होता। न्यायाधिकरण ने दो ऐसे मामलों में तकरीबन चालीस से अधिक परमिट निरस्त कर दिए, हालांकि यह मामला अब हाईकोर्ट में चल रहा है। न्यायाधिकरण के इस फैसले के बाद विभाग ने नए आवेदन फार्म जारी करने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में अहम सवाल यह है कि इतने वर्षों में इन फार्म पर जो परमिट जारी हुए क्या वे सभी अवैध हैं। और जो फार्म आरटीए की बैठक के बाद जमा किए गए उनका क्या होगा। शायद इन पर भी कोर्ट कचहरी के बाद ही कोई निर्णय हो। इस संबंध में आरटीओ देहरादून एके सिंह का कहना है कि पूर्व से ही ऐसी व्यवस्था चली आ रही थी, ऐसे में किसी ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। विभाग में अब नए आवेदन फार्म ही जारी किए जा रहे हैं।

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