Monday 25 May 2009

-रिंगाल बचाएगा दुर्लभ कस्तूरी मृगों को

-ओएनजीसी दे रहा तीन करोड़ 72 लाख रुपये की मदद -अब तक सूबे में 3 लाख 37 हजार 5 सौ रिंगाल के पौधे रोपे गए विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए राज्य पशु कस्तूरी मृग को रिंगाल के जरिए बचाया जाएगा। उत्तराखंड बैैंबू बोर्ड ने इसके लिए सात संरक्षित क्षेत्रों में अब तक ओएनजीसी की वित्तीय मदद से 3 लाख 37 हजार 5 सौ रिंगाल के पौधे लगाए हैैं। ओएनजीसी इस परियोजना के लिए 3 करोड़ 72 लाख रुपये की मदद दे रहा है। मालूम हो कि कस्तूरी मृग प्रदेश के सात संरक्षित क्षेत्रों गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविंद पशु विहार, केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य, नंदादेवी नेशनल पार्क, फूलों की घाटी, बिन्सर अभयारण्य और अस्कोट अभयारण्य में पाया जाता है। केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ धर्मेंद्र पांडे के मुताबिक उत्तराखंड में मात्र 279 कस्तूरी मृग ही बचे हैैं। इनमें से 137 संरक्षित क्षेत्रों में हैैं। 1982 में उप्र शासन के दौर में कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए वन विभाग ने चमोली की मंडल घाटी के कांचुला खरक में 20 हेक्टेयर क्षेत्र में तीन नर व चार मादाओं के साथ एक कस्तूरी प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया था। शुरुआत में इसका लाभ भी मिला और कस्तूरी मृगों की संख्या भी बढ़ी। 2004 में यहां से चार कस्तूरी दार्जिलिंग के उच्च शिखरीय चिडिय़ाघर भी भेजे गए। लेकिन बाद में दो दशकों में 42 कस्तूरी मृग अज्ञात वजहों से मौत के शिकार हो गए। पैसे व संसाधन की कमी की वजह से प्रजनन केंद्र भी बंद हो गया। दून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, बरेली के आईवीआरआई और पंतनगर विवि में कस्तूरी मृगों के परीक्षण से पता चला कि ज्यादातर हिरन पेट की बीमारी, निमोनिया और हृदयाघात की वजह से मौत का शिकार बने। धर्मेंद्र पांडे का कहना है कि बांस की ही प्रजाति रिंगाल कस्तूरी मृगों की रिहाइश का अभिन्न अंग है। जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय की हिमरेखा ऊपर खिसक रही है तो कस्तूरी की रिहाइश से रिंगाल गायब हो रहा है। रिहाइश का मुफीद न रहना कस्तूरी मृगों के लिए मुसीबत बन रहा है। उनके लिए मुफीद रिहाइश बनाने के लिए पांच साल में 730 हेक्टेयर वन भूमि में रिंगाल लगाया जाना है। नंदा देवी बायोस्फेयर में 230 हेक्टेयर, केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग में 250 हेक्टेयर व पिथौरागढ़ वन प्रभाग में 250 हेक्टेयर वनभूमि में रिंगाल लगेगा। पिछले साल तक नंदा देवी बायोस्फेयर में 75 व केदारनाथ वन्य जीव प्र्रभाग में 60 हेक्टेयर मिलाकर कुल 135 हेक्टेयर क्षेत्र में रिंगाल लगाया जा चुका है जबकि लक्ष्य 120 हेक्टेयर का ही था। प्रोजेक्ट में अब पिथौरागढ़ के शंखधुरा, हरकोट, लटि पांगती वन पंचायत और सुरमोली, सुरिंग रिजर्व फॉरेस्ट का 250 हेक्टेयर क्षेत्र और जोड़ा गया है। उत्तराखंड बैैंबू बोर्ड के अध्यक्ष एसटीएस लेप्चा के मुताबिक रिंगाल बहुल क्षेत्र कस्तूरी मृग के लिए ही नहीं मोनाल के लिए बहुत अच्छा प्राकृतिक आवास है।

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