Saturday 2 May 2009

शादी हो या मंुडन, नेताजी हाजिर

, देहरादून शादी-ब्याह का सीजन है। लोकतंत्र का उत्सव भी। युवा भले ही घोड़ी चढ़ने में ना नुकुर कर लें, मगर सभी सियासी दल सत्ता की घोड़ी पर चढ़ने को बेकरार हैं। सत्ता की घोड़ी भी ऐसी होती है कि जब तक आमने सामने भीड़ न हो आगे नहीं बढ़ती। ऐसे में तमाम साल जनता को मिलने से इनकार करने वाले सियासी दलों के नेता भीड़ देखी लार टपकाए चले आने लगे हैं। जी हां! आजकल सभी जगह यही हाल है। तमाम और दिन लोगों को नजर अंदाज कर देने वाले नेताओं के लिए आजकल आम लोग बड़े कीमती हो गए हैं। तमाम राजनेता अपने चुनावी दौरे की तरह धड़ाधड़ शादियों, मुंडनों, बर्थ डे पार्टियों यहां तक कि तेरहवीं के भोज में भी नजर आने लगे हैं। एक नेताजी के चिंटू से हमने इस बारे में पूछा तो बोले -ऐसे कार्यक्रमों में मुफ्त में भीड़ जुटती है। पार्टी कार्यकर्ताओं को भी मेहनत नहीं करनी पड़ती। शादी जैसे कार्यक्रम तो देर रात ही होते हैं तब तक आधिकारिक चुनाव प्रचार भी खत्म हो चुका होता है। लोग भी समझते हैं नेताजी कितने मिलनसार हैं। ऐसे आचार संहिता के डंडे से मुक्त फ्री में प्रचार का मौका भला कौन बेवकूफ छोड़ना चाहेगा। इन घरेलू कार्यक्रमों को नेता लोग खाली अटेंड कर रहे होते तो दूसरी बात थी। मगर वे आजकल शादी आदि में अपने चेले चांटों के साथ केवल पधारते ही नहीं बल्कि बड़ी देर तक पधारते हुए हर आने-जाने वाले पर अपनी बत्तीसी दिखाते हुए चौड़ी मुस्कान का जाल फेंकते हैं। जिस तरह हर पुलिसवाले को अगला आदमी मुर्गी दिखलाई पड़ता है, नेताजी को भी हर आदमी वोट दिखलाई दे रहा है। उन्हें पता है कि यही वोट उनकी चुनावी नैया पार लगा सकता है। कुछ दिन बचे हैं। तो पाठको! अगर आप चाहते हैं कि आपके बेटे-बेटी की शादी, मंुडन या बर्थडे आदि में नेताजी पधारें तो तुरंत कार्ड भेज दीजिए। शर्त यह है कि कि कार्यक्रम 13 मई से पहले होना चाहिए। उसके बाद किसका पता?

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