Thursday 30 April 2009

वीर चक्र विजेता का अधूरा रहा सपना

टनकपुर: हर बार चुनाव में लुभावने वादे व आश्वासन जनता को दिये जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में यह वायदे कितने साकार होते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। एक वादा जो साढे तीन दशक पूर्व सीमा पर दुश्मनों के दांत खटटे करने वाले उस जांबाज वीर चक्र सूबेेदार चन्द्री चंद को वीरता के लिए दिया गया था। जो उनके मरने के बाद भी साकार नहीं हो पाया। हम बात कर रहे हैं उस जांबाज सैनिक की जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अहम भूमिका निभाई थी। चंपावत जिले के एक मात्र वीर चक्र विजेता सूबेदार चन्द्री चंद को उनकी बहादुरी के लिए सरकार से इनाम में मिली जमीन पर कब्जा पाने का सपना लिए 22 नवंबर 2007 को दुनिया से विदा हो गये। शासन -प्रशासन की लचर व्यवस्था को इस योद्घा ने कई दशकों तक करीब से महसूस किया। सीमा की रक्षा को मुस्तैद रहने वाले सैनिकों के उत्थान के लिए सरकार समय-समय पर घोषणाएं तो जरुर करती है लेकिन इन पर अमल नहीं होता। स्वर्गीय चंद की कहानी भी इसी का जीता जागता उदाहरण है। मूल रुप से पिथौरागढ जिले के उखडी सेरी गांव में 13 अक्टूबर 1920 को जन्मे वीर चक्र विजेता चन्द्री चंद का परिवार नगर से सटे गांव आमबाग में जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहा है। मात्र 18 वर्ष की उम्र में स्व.चंद 13 अक्टूबर 1938 को पहली कुमांऊ राइफल्स (इन्फैन्ट्री यूनिट) में भर्ती हुए। महज तीन वर्ष बाद ही उन्हें दूसरे विश्व युद्घ में भाग लेने का मौका मिला। 25 जुलाई 1941 को ईरान स्थित विश्व के सबसे बडे तेल भंडार अबादान शहर पर कब्जा करने में श्री चंद ने अहम भूमिका निभाई थी। 14 मार्च 1948 को सूबेदार चंद के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना को पीछे खदेडते हुए झाांगर भूमि पर तिरंगा फहराया। प्रतिक्रिया में दुश्मनों की ओर से की गई बमबारी में एक बम श्री चंद के बंकर के पास गिरा। जिससे वह मलवे में दब गये। इस पर भी वह मोर्चे पर डटे रहे। जान की बाजी लगाकर दुश्मनों से लोहा लेने के लिए उन्हें पहले गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें वीर चक्र उपाधि से नवाजा। भारत सरकार ने उनकी बहादुरी के लिए सत्तर के दशक में उन्हें ऊधमसिंह नगर जिले के तहसील खटीमा के गांव बिलहरी चकरपुर में बीस बीघा जमीन इनाम में देने की घोषण की। लेकिन यह घोषणा आज तक पूरी नहीं हो पाई है। जिंदा रहते हुए वीर चक्र विजेता चंद ने हर राजनीतिक दलों के नेताओं,शासन व प्रशासन से पुरस्कार में मिली जमीन को दिलाने के लिए ऐडी-चोटी एक की। लेकिन दुश्मनों को हर मोर्चे पर नाकाम करने वाला यह योद्घा नाकारा व्यवस्था के आगे हार गया।

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