Sunday 29 March 2009

नेगी दा इन गीत तू लगा

देर होली अबेर होली, होली जरूर सबेर होली . आप और हमको नेगी जी इस गीत से दिलासा दिलाते हैं, पर खुद नेगी जी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए अंधेर की हद तक इंतजार करना पड़ रहा है. अब नेगी जी तो पता नहीं सम्मान की कितनी फिक्र है, पर उनके सुणदरों को इस पल का बेहद इंतजार है. नेगी दा के एक ऐसे ही सुणदर संजीव कंडवाल भी इन लोगों में शामिल हैं. पेश है उनकी खैरी, नेगी दा इन गीत तू लगा ............... भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले नागरिक सम्मानों की घोषणा हुए अब अच्छा खास वक्त बीत गया है. इस पर भी काफी लिखा गया कि कश्मीर का एक शॉल व्यापारी, कारीगर के नाम पर किस तरह पद्म पुरस्कार ले उड़ा दिल्ली की लगड़ी हुकूमतों को जब तक अमर सिंह की जरूरत महसूस होगी, कोई एश्वर्या राय, बिग 'बी' या स्मॉल 'बी' बारी बारी से पुरस्कार झाटकते ही रहेंगे.खैर, इन पुरस्कारों की शुचिता बहाल करना हमारी चिंता में शामिल नहीं है, कम से कम यहां पर में 'बेमानी होते नागरिक सम्मान' जैसा लेख भी नहीं पेल रहा हूं. मैं तो इन पुरस्कारों में अपना हक तलाश रहा हूं, अपना यानि उत्तराखंड के मसलों का. मेरे से इत्तफाक रखते हों तो साथ में आएं और जो मेरी बात बंडल लगती हो तो मुझो कोसने के लिए आप स्वतंत्र हैं. .................

इस बार भी कुछ पहाड़ी जन इस लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन इस बार भी वह नाम नहीं था, जिसे मैं हर बार 25 जनवरी की शाम अपने न्यूजरूम में खबरें लिखते वक्त दिल्ली की न्यूजएजेंसी से आने वाली खबरों में तलाशता हूं. जाने क्यूं मुझो लगता है कि मेरी तरह हजारों और पर्वतजन इस नाम को अगले दिन न्यूज पेपर में तलाशते होंगे. पर ऐसा नहीं हो पाता, साल दर साल. इन पुरस्कारों का चयन करने वाले कला, साहित्य समाज के मूर्धन्य विद्वानों से मेरा सवाल है कि अब तक मेरे नरू भै (नरेंद्र सिंह नेगी) को कोई पद्म पुरस्कार क्यूं नहीं मिला. अगर छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश के आदिवासियों के लिए तीजनबाई की पांडवानी को सम्मानित किया जाना गौरव की बात है तो हमारे नेगी दा भी लाखों उत्तराखंडवासियों के आवाज हैं. पहाड़ के किस व्यथा को उन्होंने आवाज नहीं दी. सरकारें जलागम, जंगलात जैसी नकली योजनाओं के जरिए जंगल बचाने का सपना पालती हैं, तो नेगी जी ' ना काटा तों डाल्यंू ना काट' गाते हैं. बात फिर भी समझा ना आए तो 'जिदेरी घसेरी' को भी समझााते हैं. पर्यावरण के नाम पर लेक्चर बांटने वाले तो खूब सम्मानित हुए हैं, पर लोक बोली में जंगल बचाने का सीधा संदेश देना वाला अब तक हासिए पर क्यूं है. इसलिए मेरा सवाल बनता है कि जब राष्ट्रपति भवन के सेंट्रल हाल में ज्यादातर लोक बोलियों की गूंज हो चुकी है तो फिर 'ठंडो रे ठंडो' क्यूं नहीं. .........

चलो यह बात तो दिल्ली के विद्वानों की हुई, पर अपनी देहरादून की सरकारें क्या कर रही हैं. आखिर पुरस्कारों की औपचारिक घोषणा से पहले एक बार राज्य सरकारों से भी नाम मांगे जाते हैं. फिर कैसे हर बार नेगी दा पीछे छूट जाते हैं, फिर कैसे इंकार किया जा सकता है कि पुरस्कार काम के लिए नहीं जुगाड़ के लिए दिए जाते हैं. हम नहीं कर रहे हैं कि नेगी दा को पद्म पुरस्कार मिल गया तो पुरस्कार के साथ चलने वाले सारे विवाद दूर हो जाएंगे, बावजूद इसके जब हर साल अज्ञात अल्पज्ञात और विवादित फिल्मी हस्तियों को सम्मानित होता देखता हूं तो नेगी दा की कमी मुझो कुछ ज्यादा ही खलती है.अपनी हुकूमतों से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी है, समाज समूह का दवाब कर गया तो कहना मुश्किल है. आखिर इन्ही सरकारों की नजर में नेगी जी और एक काल गर्ल रैकेट चलाने वाला दलाल बराबरी पर खड़े हैं. याद है ना जिस साहित्य सांस्कृतिक परिषद में नेगी सदस्य रहे हैं, उसके एक सदस्य पर इसी तरह के आरोप लगे थे. ऐसे में 'सब्बी धाणी देहरादूण' पर कमेंट करने वाले नेगी को देहरादून के सत्ताधीश भला कैसे स्वीकार कर सकते हैं. बल्कि इन लोगों ने जब तब नेगी को नीचा दिखाने की कोशिश की है. 'नौछमी' ने किस तरह नेगी को अपने खर्च पर फॉरेन टूर पर जाने से रोकने की कोशिश की, मीडिया से जुड़े होने के कारण मै इस ड्रामे से बखूबी वाकिफ हूं. नौछमी तो पहाड़ी प्रतीकों के प्रतिनिधि विरोधी हैं, पर मौजूदा सरकार भी नेगी से भय खाती नजर आ रही है. और इस सरकार में पहाड़ी सरोकारों का दम भरने वाली यूकेडी भी शामिल है. इसलिए मुझे कुछ ज्यादा बुरा लग रहा है. खैर अब जो हुआ सो हुआ, हमें ठोस एक्शन प्लान के साथ काम करना होगा. हमारे अप्रवासी भाई बंद इस बारे में अच्छी पहल कर सकते हैं. अपनी सरकार के नुमाइंदों से हम इस बारे में सवाल कर सकते हैं. पहाड़ आधारित डॉटकाम पर ऑनलाइन पोल काफी नहीं होगा, हो सके ?तो कुद सार्वजनिक मंचों से इस बात को उठाई जाए. गहरी नींद में सौ रहे सत्ता के कुंभकरणों को जगाने के लिए मंडाण लगाया जाए. मांगल गाए जाए, दैणा हुंय्या दिल्ली की सरकार, दैणा हुंय्या देहरादूण की सरकार ... लेखक दैनिक जागरण ग्रुप मेरठ में सीनियर रिपोर्टर हैं. आपकी राय का इंतजार -

mail me sanjeevkandwal@gmail.com

www.pahar1.blogspot.com

(uttarakhand first news blogs)

2 comments:

  1. Negi ji padmashri se bahut uper utah chuke hain. Chunki Padma Shri se pehle padmashri ki file banti hai, jisee ghooskhor babu banate hain aur uss per bhrasht afsar aur neta apni mohar lagate hain,issleyea Negi Ji ko padmashri dene se inn logon ka koi fayada nahi hone wala. Aisee baat nahi ki padmashri pane wale sabhi ghatiya log rahe hon, per Chandi Parsad Bhatt ji ka udharan tou sab key samne hai, ek achha bhala sangharsheel sarvodayi karyakarta sarkari samaan pane key baad sarkar ki god main baith gaya. Aise aur bhe kitne hain jo press clippings ki file jama kar ke padmashri ban gaye hain. Anil Joshi ko dekh lo....ye aadmi fakat press walon ki gairjimendaar reporting ka vikraal utpaadan hai.
    Mere vichaar se Negi Ji ko apne rachna yatra main lage rehna chaahiyea.... unke dwara racha gaya sahitya amar hai..

    Khaaskar Negi Ji jis vidha se hain us main samaan pane key baad COMPROMISE karna he padega.

    Uttarakhand nirmaan key baad yahan sirf Neta logon ki he tarakke hue hai, jo kal tal block pramukh ban-ne ki politics main the aaj Mantri hain, aap kya samajhte hain ki inn logon ka mansik star itna ooncha hai ki wo Negi Ji key contribution ko samajh payen...

    Tiwari ka tamasha sab ne dekha. Uttarakhand rajya nirmaan main mahilaon ki pramukh bhumika rahi kintu Tewari ka yug Rakhailon key yug ke roop main jana jayega. Harak Sigh Tewari ka he naya sanskaran hai....
    Khanduri ne aate samaya vade tou bahut kiyea per bhai sahab CM ki gaddi key leyea usko bhe compromise karna pada, ek taraf Koshyari ki thekedar sena tou dusree taraf RSS ka danda....

    TOU aise log jo Negi Ji key padmashri ki file per sanstuti denge wo khud bahut chote hain, samaan apne se bade logon se liya jata hai, filhaal Dehradun se lekar Delhi tak ess kism key log nahin hain jo Negi Ji ko samaan dene ki Oukaat rakhte hon

    Sach

    Bilkul Sach !


    ek agyaat, jo janta hai itihaas

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  2. negi da kisi sarkari pahchan aur puraskar ke mohtaj nahi hain. Isliye kripaya sarkar ka na kosen, kyonki sarkar andhi, langari, luli aur bhrust hai. wo jutoon me daal baantati hai. andho ko rewari deti hai, lekin asli heeron ki pahchan nahi karti.

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