Saturday 28 March 2009

हजारों मील दूर बसाया छोटा तिब्बत-वतन से दूर रहकर भी नही भूले संस्कृति

नैनीताल: चीनी सरकार के दमनात्मक रवैये के चलते पचास वर्ष पूर्व अपने वतन तिब्बत से दूर भारत पहुंचे तिब्बतियों ने जगह-जगह अपने शिविर लगाए। साथ ही भारत सरकार ने तिब्बतियों को बसाने में पूर्ण सहयोग भी दिया। देश के प्रति आभार जताते हुए नैनीताल में बसे तिब्बती अपनी परम्पराओं व संस्कृति को वतन से हजारों मील दूर रहकर भी नहीं भूले। तिब्बत पर चीन की नजर सन् 1940 में व्यापारिक गतिविधियां के दौरान पड़ी। सन् 50 तक तिब्बत के आधे भूभाग पर चीन अपना अधिपत्य कर चुका था। तिब्बत की राजधानी ल्हासा को सन् 1954 में कब्जे में ले चुका था। चीन की नीतियों के विरोध में ल्हासा में विद्रोह के स्वर गूंजने लगे थे, लेकिन धीरे-धीरे तिब्बती पलायन करने लगे। पलायन के चलते आशियाने की तलाश में भारत पहुंचे तिब्बतियों ने सरोवर नगरी नैनीताल में भी अपना घर तलाशा। न तो लाल मिट्टी की चट्टानें और ना ही सैकड़ों मीटर फैले बुग्याल लेकिन फिर भी वतन से हजारों मील दूर इन तिब्बतियों ने बसाया एक छोटा सा तिब्बत जहां पर लगभग 360 तिब्बती जन अपनी सभी धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं। नैनीताल के सुख निवास में रंग-बिरंगी झंडियों से घिरे तिब्बतियों के गानदेन कुन क्योंप लिग बौद्घ मठ में सुबह शाम पूजा अर्चना में लीन बौद्घ भिक्षुओं को देखते ही तिब्बत का धार्मिक चित्र साफ नजर आने लगता है। तिब्बती बौद्घ मठ में अपने धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों में नगर के सभी वर्गो को आमंत्रित करते हैं और उनका स्वागत सत्कार भी तिब्बती परम्पराओं के अनुरूप करते हें। अतिथियों का स्वागत तिब्बतियों द्वारा हरी चाय की पत्ती, नमक, दूध व मक्खन से बनी स्वादिष्ट छा यानी नमकीन चाय से होता है। पूजा पाठ के उपरांत प्रसाद स्वरूप तिब्बती डेसिल अर्थात चावल, घी, किसमिस, चीनी, बदाम, काजू व नारियल से बने मीठे चावल का वितरण किया जाता है। तीज-त्यौहारों में पारंपरिक पोशाकों से सजी-धजी महिलाएं भी तिब्बत के रंग में डूबी नजर आती हैं। नैनीताल में अपने बच्चों की आरंभिक शिक्षा के लिए सुख निवास में ही सन् 1981 में एक विद्यालय का निर्माण किया गया। जहां निर्धन बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है। तिब्बती परिवारों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से सन् 1983 में उप्र के तत्कालीन गर्वनर सीपीएन सिंह ने मल्लीताल फ्लैट के समीप तिब्बती बाजार का शुभारंभ किया। जहां से सभी तिब्बती अपनी व्यापारिक गतिविधियां संचालित करते हैं। वतन से हजारों मील दूर बसे अपने आशियाने को तिब्बत का दर्जा दे चुके पेमा जी सिथर भारत को तिब्बती भाषा में फक्क यूल की संज्ञा देते हैं अर्थात देव स्थल, बौद्घों के सर्वाधिक तीर्थ स्थान भारत में ही स्थित है। पेमा के अनुसार नैनीताल में हमें तिब्बत जैसा प्यार मिलता है। लोग हमें शादी-विवाह में आमंत्रित करते हैं। हम उनके सुख-दुख के भागीदार बनते हैं। सुख निवास के वरिष्ठ तिब्बती नागरिक तैनचिन डिल्ले, रिमपोंछे, पेमा छौपल, गोनम डोल्मा व अत्तर लूडं्प आदि कहते हैं कि अब हमारा घर नैनीताल में ही है। हमारे सभी त्यौहार जैसे बुद्घ जयंती, दलाई लामा का जन्मदिन या फिर तिब्बती नव वर्ष लोसर आदि का आयोजन जब धूमधाम से यहां मनाते हैं तो हमें तिब्बत नैनीताल में नजर आता है। pahar1.blogspot.com

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