Friday 20 March 2009

कनाड़ा मे भी पहाड़ की धूम-

पाराशर गौड़ की पुस्तक “उकाल-उंदार” का लोकार्पण किया गया। “उकाल-उंदार” गढ़वाली की कविताओं और उनके हिन्दी अनुवाद का द्विभाषीय संकलन है; और इसी कारण से यह अनूठी पुस्तक है क्योंकि अभी तक भारत से बाहर प्रकाशित इस शैली की यह पहली पुस्तक है। पाराशर गौड़ ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड को इस नये प्रयास की नींव डालने के लिए धन्यवाद और बधाई दी। उन्होंने कहा कि लोक भाषा को जिस तरह से विदेश में मान मिला है वैसा तो भारत में भी नहीं मिलता। इसके पश्चात उन्होंने अपनी पुस्तक में से चार कविताओं का पाठ किया। सुमन कुमार घई ने पुस्तक के विषय में बोलते हुए बताया कि इस पुस्तक के लेखन का काल १९६५ से १९७५ है। इस पुस्तक की अधिकतर कविताएँ उतरांचल की माँग के जनान्दोलन से उत्पन्न हुई हैं। कविताओं में आंचलिक आक्रोश, कुंठा और विवशता की अभिव्यक्ति है। पाराशर गौड़ का कवि के रूप में एक अपरिचित रूप है क्योंकि इस समय वह व्यंग्य-हास्य और कोमल भाव की कविताओं के लिए जाने जाते हैं। डॉ. शैलजा सक्सेना ने पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि इन कविताओं में व्यक्त आक्रोश केवल उत्तरांचल का आक्रोश नहीं अपितु उस काल के हर युवा का आक्रोश है। राजनैतिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार और लालफीताशाही से कुंठित समाज का आक्रोश है। उन्होंने पाराशर जी को धन्यवाद दिया कि हिन्दी कविता में आंचलिक शब्दों के प्रयोग से उन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। अगले चरण में जसबीर कालरवि ने अपनी लोकार्पित पुस्तक “रबाब” में से दो रचनाएँ सुनाईं और दो नई कविताएँ सुनाईं। कैनेडा के हिन्दी साहित्य जगत में जसबीर कालरवि का नाम नया है। उनकी कविताओं में एक नई ताज़गी है और क्योंकि वह मूलतः पंजाबी के कवि हैं; तो उनकी कविता में पंजाबी का रंग आ जाना स्वाभाविक ही है और इससे उनका लेखन हिन्दी साहित्य के जानकारों को सुखद विस्मय की अनुभूति देता है।
कनाड़ा से परासर गौड़

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