Monday 23 February 2009

अंग्रेजों से जीते पर अपनों से हारे.

हल्द्वानी देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने तथा अपनी जान की बाजी लगाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आज उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। लड़ाई में अंग्रेजों से तो जीत गये लेकिन वह अपने ही लोगों से हार गये । देश को आजादी दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले तथा उत्तराखंड स्वतंत्रता सेनानी व आश्रित संगठन के अध्यक्ष डूंगर सिंह बिष्ट का कहना है कि उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी से समस्याओं के संबंध में वार्ता के लिए पांच बार पत्र भेजकर समय मांगा, लेकिन आज तक उन्हें समय नहीं मिल सका है। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार स्वतंत्रता सेनानियों की समस्याएं हल करना तो दूर उन्हें सुनने तक को राजी नहीं है। श्री बिष्ट ने बताया कि उत्तराखंड में लगभग दो दर्जन स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनमें गांधीवादी कहलाने वाले बमुश्किल आधा दर्जन लोग ही बचे हैं। इनमें प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पं.नारायण दत्त तिवारी व हल्दूचौड़ निवासी दुर्गादत्त दुर्गापाल शामिल हैं। सन् 1940 से 44 तक लगभग साढे़ चार साल तक यूपी की 15 जेलों में रह चुके श्री बिष्ट ने कहा कि उन्होंने जिस प्रकार अंग्रेजों की यातना सहकर देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी, उसका यह नतीजा मिलेगा, कभी सोचा भी नहीं था। इसी तरह चौखुटिया क्षेत्र के छाना गांव निवासी स्वतंत्रता सेनानी खेम सिंह बिष्ट व जैंती के कुटौली निवासी मर्चराम को सरकार ने आजादी के बाद कागजों में तो तराई क्षेत्र में जमीन आवंटित कर दी, लेकिन वह जमीन आज तक उन्हें नहीं मिली है। उस जमीन पर चल रहे कब्जों को हटाने के लिए सरकार ने कोई पहल नहीं की। जिससे इन सेनानियों ने जमीन की आस ही छोड़ दी। यही हाल जैंती के राम सिंह धौनी व दुर्गा सिंह कुटौला के गांव का है। उनके परिजनों की जमीन दरक गयी व मकानों में दरार आ गयी है। लेकिन कई बार शासन-प्रशासन को अवगत कराने के बाद भी कोई सुध नहीं ली गयी है। इससे सेनानियों के परिजन भी काफी आहत हैं। उनका कहना है कि सरकार का रवैया जब स्वाधीनता सेनानियों के प्रति ठीक नहीं है तो फिर आम आदमी की तो पूछ ही क्या है।

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