Monday 19 January 2009

जिन्हें हैं प्रत्याशी चयन की जिम्मेदारी वह खुद ही दावेदार

हल्द्वानी नियम-कानून वाली पार्टी माने जाने वाली भाजपा में आजकल अजीबोगरीब स्थिति है। पार्टी आलाकमान ने जिन लोगों को लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी चयन की जिम्मेदारी सौंपी है,वह खुद ही दावेदार बन गये हैं। ऐसे में टिकट चयन में ईमानदारी बरतने में संदेह पैदा हो गया है। चाहे लोकसभा चुनाव हो अथवा विधानसभा व राज्यसभा चुनाव। भाजपा में प्रत्याशी के नाम की घोषणा तो केन्द्रीय आलाकमान ही करता है, लेकिन इसके लिए राज्य शाखा के निर्णय को भी तवज्जो दी जाती है। इसके लिए राज्य स्तर पर संसदीय बोर्ड गठित है। जो प्रत्याशी के नामों को पैनल तैयार कर केन्द्र को भेजता है, वहां से अंतिम निर्णय होता है। उत्तराखंड में 18 सदस्यीय संसदीय बोर्ड है। इसमें तीन आमंत्रित सदस्य भी शामिल हैं। संसदीय बोर्ड प्रदेशाध्यक्ष बची सिंह रावत, मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी,महामंत्री (संगठन)नरेश बंसल,सह महामंत्री (संगठन)धनसिंह रावत,महामंत्री तीरथ सिंह रावत व अजय भट्ट,उपाध्यक्ष सुरेश जोशी,चन्द्रशेखर भट्टेवाला,पूर्व प्रदेशाध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी, पूरन चन्द्र शर्मा, बलराज पासी, विजय बंसल,महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष कुसुम कंडवाल,पूर्व मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी, अनीता के अलावा विधायक कोटे से स्वास्थ्य मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, शिक्षा मंत्री मदन कौशिक व समाज कल्याण मंत्री विशन सिंह चुफाल शामिल हैं। बीते दिनों यह बोर्ड लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों के चयन के लिए एक बैठक कर भी चुका है। मजेदार बात यह है कि भाजपा के संसदीय बोर्ड में शामिल सदस्य खुद ही टिकट के दावेदार हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बची सिंह रावत, पूर्व अध्यक्ष पूरन शर्मा,दायित्वधारी बलराज पासी, पूर्व में प्रत्याशी रहे विजय बंसल,महामंत्री अजय भट्ट खुद नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीट से दावेदार हैं। पूर्व अध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी,शिक्षा मंत्री मदन कौशिक, भाजपा नेत्री अनीता,महामंत्री (संगठन) नरेश बंसल हरिद्वार सीट से टिकट मांग रहे हैं। इनके नाम पर संसदीय बोर्ड की बैठक में विचार भी हुआ है। 18 सदस्यों वाले संसदीय बोर्ड के आठ सदस्यों के खुद दावेदार होने से किस हद तक नामों पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जा सकता है, इसका अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है। हालांकि भाजपा में एक व्यक्ति-एक पद की परंपरा रही है, लेकिन आधुनिक भाजपा में अब वह बीते जमाने की बात हो गयी है। पदाधिकारियों ने दावेदारी के साथ ही टिकट पाने के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर ऐड़ी-चोटी के जोर लगा दिये हैं। भाजपा के वर्तमान हालातों के मद्देनजर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अंधा बांटें रेवड़ी, अपने-अपने को दे।

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